@SriSri
विचार और भावनाओं को अपना मानना और उनके साथ तादात्म करना अज्ञान हैI
वे आते हैं, तभी आप उनको जान पाते होI जैसे ही आप साक्षी होते हो, तो विचार और भावनाओं से तादात्म टूटता हैI साक्षी भाव से आप मुक्ति अनुभव करते होI
Identifying yourself with your thoughts & emotions,thinking that you created them and that you are a prisoner, is utter ignorance. You can only know thoughts/emotions as they come.When you stop identifying with them/owning them,you become a witness.That is Freedom!
विचार और भावनाओं को अपना मानना और उनके साथ तादात्म करना अज्ञान हैI
वे आते हैं, तभी आप उनको जान पाते होI जैसे ही आप साक्षी होते हो, तो विचार और भावनाओं से तादात्म टूटता हैI साक्षी भाव से आप मुक्ति अनुभव करते होI
Identifying yourself with your thoughts & emotions,thinking that you created them and that you are a prisoner, is utter ignorance. You can only know thoughts/emotions as they come.When you stop identifying with them/owning them,you become a witness.That is Freedom!
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